~Mansi~
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I am a versatile blogger, and recently, more into book reviews. I am an engineer by profession and a writer by choice. My website is an exression of me, my identity and my essence.
~Mansi~
9M ago
कुछ समय पहले मैंने एक कहानी सुनी थी। आज उसे अपने शब्दों में लिख रही हूं।
एक गांव में एक पिता अपने बेटे और बहु के साथ रिटायरमेंट के बाद खुशहाल जीवन व्यतित कर रहे थे। बेटा और बहू उनका खूब सम्मान करते। कुछ माह में उनके दादा बनने का संयोग था। वे अपनी गर्भवती बहु की सेहत और आराम का पूर्ण ध्यान रखते थे।
एक बार पिताजी शाम को मित्रों के साथ टहल कर घर आये। उनका बेटा आफिस से लौटने के पश्चात हाथ मुँह धो कर बैठा था। बहु ने गरमा गरम चाय का कप देते हुए पिताजी से पूछा कि भोजन में क्या लेंगे। पिताजी ने कहा "बहु कुछ देर बैठो भोजन की क्या जल्दी है! " भावी माता पिता से पूछा कि तुम अपनी आने वाली संतान का कि ..read more
~Mansi~
1y ago
सुबह उठी, बेटे के स्कूल का लंच बॉक्स बनाया,
सोच चख लूं, मिर्च ज़्यादा हुई तो भूखा लौट आएगा,
पति जॉगिंग कर के घर आये, संतरे का जूस बनाया,
सोचा चख लूं, कहीं खट्टा तो नहीं बना ,
दोपहर का भोजन बनाया, लगा दाल में नमक कम हो गया होगा,
सोचा चख लूं, कहीं सबको पसन्द ना आई तो,
बेटा स्कूल से वापिस आया, पकौड़े की फरमाइश करी,
बनाते हुए सोचा चख लूँ, ठीक से पका या नहीं,
शाम की चाय का समय हुआ, किसी को अदरक चाहिए किसी को शक्कर कम,
सबकी चाय थोड़ी थोड़ी चख लेती हूं, कहीं उनके मुँह का स्वाद ना बिगड़ जाए,
रात का भोजन जब बना, साथ मे सलाद भी काटा,
सोचा चख लेती हूं, कहीं फिर से कड़वा खीरा तो नहीं खरीद लायी,
सुब ..read more
~Mansi~
1y ago
I wanted to be a poet,
To be able to create my own rhymes,
And perhaps write infinitely by the river side,
Alas, I am so decked up and can never find time,
I wanted to be a chef,
And perhaps be the queen of fine dine,
A mistress of spices, and a fierce baker,
Alas, the knives and tongs don't want to be mine,
I wished I could travel to a distant land,
And magically be back in a pinch,
A genie vase in my hand and wishes fulfilled at my finger tips,
Alas, here I am, captivated in the little room,
I wanted to own a kingdom,
Glass heels and velvety pillows for leisure,
Pearls and pleas ..read more
~Mansi~
1y ago
प्रतिदिन के इस स्पंदन में,
अनन्त चलते विचार मंथन में,
संयोंग ये रहता हर मन में,
अथक चलती है विचार धारा,
हर मन असन्तोष का मारा,
क्यों नहीं मिला मुझे जो उसने पाया,
खत्म कहाँ होती हर मन की माया,
श्रृंखला है अद्भुत अनंत सुख प्राप्ति की,
कैसे वर्णन हो क्या है सुख की परिभाषा,
बस ये मिल जाये और हम ख़ुश हो जाएं,
बस वो मिल जाये फिर हम तृप्ति पाएं,
परिश्रम किया, पूजन किया और सुख मिल ही गया,
किन्तु श्रंखला में जुड़ गई बेहतर सुख की आशा,
ऐसा है मानव जीवन का तमाशा,
कैसे समझाएं इस चंचल मन को,
कितना संवारें विचारों के घर्षण को,
पार कैसे कर पाएं इस गुरुत्वाकर्षण को,
गुत्थी सुलझाएं कहो कैसे अब हमको,
सहज ..read more
~Mansi~
2y ago
कब तक सबके लिए जिया करोगी,
ज़िन्दगी अपने हिस्से की कब चखोगी,
बच गया तो खा लिया वरना ख़ुद के लिए सलाद कौन काटेगा,
सेहत तुम्हारी भी है ज़रूरी, ये कोई न तुम्हें समझायेगा,
याद रखती हो हमेशा, की कोई पकौड़े नहीं खाता, कोई सेब से मुंह चुराता,
फिर कैसे भूल जाती हो ख़ुद अपनी पसंद नापसन्द,
काटो तरबूज़, डालो अंगूर,
अपनी भी थाली सजाना ज़रूर,
परोसती हो बड़े उत्साह से सबको भोजन,
ख़ुद की भी लगाओ एक प्यार वाली थाली,
सबकी सेहत का रखती हो ध्यान,
क्या आज भी ना रखा ख़ुद की दवाई का मान,
कोई नहीं है आज चाय पीने वाला,
ये सोच कर न लगाना ख़ुद की चाह पर ताला,
सुबह सबसे पहले और रात को आखरी तक काम में मगन,
कभी तुम भी sund ..read more
~Mansi~
2y ago
तुम्हारे जीवन का आधार हूँ मैं,
कभी बेटी तो कभी माँ हूँ मैं,
मुझसे ही तुम्हारी भक्ति पूरी है,
भूलना नहीं शिव की शक्ति हूं मैं,
कृष्ण की बांसुरी पर नृत्य करती गोपी हूँ मैं,
क्रोधित हो कर महिषासुर मर्दिनी भी बनी हूँ मैं,
अहिल्या बन हुई पत्थर, द्रौपदी बन लगी दाव पर,
सीता बन समायी भूमि में, स्वर्ण सी निखरी हर अग्निपरीक्षा में,
गुड्डे गुड़ियों के खेल रचाती तुम्हारे आंगन में,
मुझसे ही तुम्हारा कन्यादान का पुण्य सम्पूर्ण है,
सुनी है मुझ बिन कलाई तुम्हारी,
रक्षा करने का वचन मुझ बिन अधूरा है,
नवजीवन की नन्ही कोपल को सवारती अपने अंदर मैं,
मेरे उस असहनीय दर्द के बिना तुम्हारी पहली मुस्कान अधूरी है ..read more
~Mansi~
2y ago
सर्दियों के मौसम में खाने का आनंद कुछ ऐसा है...
उस पीली मक्के की रोटी से जब सरसों के साग को उठाते हैं, क्या गज़ब कलर कॉम्बिनेशन नज़र आता है,
गर्मा गरम गोभी के पराठों पर तैरता हुआ मक्ख़न मन को जो लुभाता है, स्वाद की इन्द्रियों को वो जगाता है,
अदरक वाली चाय में जब काली मिर्च पड़ जाती है, बिस्कुट भी बड़े प्रेम से उसमे डुबकी लगता है,
हरे चने की कचोरी पर जब पढती है खट्टी मीठी इमली और ताज़े धनिया की तीख़ी चटनी, परम् सुख वो कहलाता है,
गर्म जलेबी से तरती हुई चाशनी, उसके केसरिया रंग को निखरती है और हमारी आँखे उसे निहारती है,
आलू बड़े में से जब नाज़ुक से मटर छुप कर हमें देखते हैं, लगता है मानो हमें ..read more
~Mansi~
2y ago
याद आता है बचपन का वो फ़साना
ना रोने का कारण ना हंसने का बहाना,
कागज़ की नाव बना कर बारिश में नहाना,
ठंड में ढूंढना स्कूल ना जाने का बहाना,
भाई बहन के झगड़े में रिमोट का टूट जाना,
"super mario" को टीवी में कुदाना,
दीवाली के पटाखे बीस दिन पहले से जलना,
होली पर पानी की पिचकारी में भी आनंद था सुहाना,
ना सुबह की खबर, ना शाम का ठिकाना,
थक कर स्कूल से आना, फिर भी बाहर खेलने जाना,
ना youtube की swiping ना PS 4 ..read more
~Mansi~
3y ago
ज़िन्दगी भी चाय की ही तरह है,
घूंट घूंट कर इसे पी लीजिए,
शक्कर की मिठास का लुत्फ़ उठाना है,
तो दूध सा निर्मल हो लीजिए,
इलाइची का सुकून, अदरक का तीखापन मिलता है इसमें,
ऐसे ही सुख दुख की कुल्हड़ छलकाते रहिये,
मिलने दीजिये कड़क चायपत्ती भी,
धैर्य रखें, फिर रंग और स्वाद का कमाल देखिये,
तपिश आएगी जाएगी समय समय पर,
उबाल आने तक इंतज़ार कर लीजिए,
छन छन कर मुश्किलें थम जाएंगी,
फिर प्याला भर आनंद ले लीजिए,
सोच विचार चिन्ता फिकर में क्यों बिताएं पल,
सामने रखी चाय ना ठंडी होने दीजिए,
कप, प्याली, कुल्हड़ या गिलास चाहे जिसमें पी लीजिये,
जीने का तरीका अपना अनोखा चुन लीजिए,
बिस्कुट और पकोड़े साथ हो ना ..read more
~Mansi~
3y ago
जब एक बच्चा जन्म लेता है,
तब माँ का भी जन्म होता है,
कैसे उसे सुलायें,
कैसे नहलाएं,
पेट भरा या नहीं कैसे जान पाएं,
भूखा तो नहीं कैसे बतलायें,
इतना क्यों रोता है,
ठीक से क्या वो सोता है,
कितनी डरी सहमी वो रहती है,
आख़िर माँ भी तो अभी जन्मी होती है,
इंजीनियर डॉक्टर बनने में सालों लग जाते हैं,
कोचिंग और इंटर्नशिप भी करवाते हैं,
माँ को तो सीधा परीक्षा में ही बैठते हैं,
योग्यता और तैयारी के प्रश्न कहां आते हैं,
पूरा जीवन वो मातृत्व सीखने में लग जाती है,
लेकिन हर पल नवजात सी वो घबराती है,
सवालों के जवाब आजीवन देती जाती है,
कटघरे में खड़ा ख़ुद को पाती है,
बच्चा क्यों दुबला है, क्या ठीक से नहीं ..read more